जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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और शक्ति अक्षय है। स्थिति में बल प्रमाणित होता है और गति में शक्ति। इसकी गवाही क्या है मानव अपने को सतत् होना स्वीकारता है। होना ही वर्तमान है। वर्तमान में ही हर वस्तु का अध्ययन होता है। उसी क्रम में वर्तमान में सबमें ‘जीवन’ समान है, जीवन सहज बल और शक्तियाँ समान है। चौथी बात जीवन का लक्ष्य सभी आदमी सुखी होना चाहते हैं। सबका लक्ष्य सुखी होना ही है। इन चारों बातों को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

जीवन गठनपूर्ण परमाणु, चैतन्य इकाई है। अब इसको कौन बनाता है ये भी बात आती है। अभी तक कोई बनाने वाला, बिगाड़ने वाला है ये झंझट रहा ही है। उसी आधार पर मानव भी सोचता है। हम भी बना सकते हैं, बिगाड़ सकते हैं यही विज्ञान का मूल आधार है। तो बना सकने, बिगाड़ सकने के झंझट में पड़ने के कारण काफी कुंठाए आ चुकी हैं। कुछ देश कहते हैं हम एटम बम बना सकते हैं, कुछ नहीं बना सकते इसलिए ये समानता का कोई अर्थ ही नहीं हुआ। क्योंकि समानता अस्तित्व सहजता में है और बम बनाना सहअस्तित्व विरोधी है। अस्तित्व जो है सहअस्तित्व सहज है। असहजता से हम कुछ भी करते हैं कहीं न कहीं उसका विरोध होता ही है। इसी तरह व्यापार हो गया लाभोन्मादी और इस कारण से ज्यादा कम वाला पिशाच पीछे पड़ गया। एक आदमी सोचता है, कम है। एक आदमी सोचता है, ज्यादा है और झगड़ा बना ही रहता है। इस तरह मानव को स्वस्थ रूप में, सुखी होकर कहीं जीना बना नहीं। इसलिए स्वस्थ रूप में जीने के लिए हर मानव को चेतना विकास मूल्य और मूल्यांकन विधि से जीना होगा। उसका पहला चरण है समझदारी, दूसरा चरण है ईमानदारी, तीसरा चरण है जिम्मेदारी, चौथा चरण है भागीदारी। इन चार चरणों में मानव को अपनी समझदारी को प्रमाणित करना है। समझदारी के अर्थ में तीन चीजें हैं जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान और मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान। जीवन के स्वरूप के बारे में आपको बतलाया। जीवन नित्य है, सुखाकांक्षी है और सुख को मानव परंपरा में ही प्रमाणित कर सकता है। इसके लिए प्रयत्न करने का पहला मुद्दा है जीवन को समझना जिसका नाम है “जीवन-विद्या”। विद्या का धारक-वाहक जीवन है। विद्या के स्वरूप में तीन भाग होता है - विद्या, विद्वता और विद्वान। विद्या :- संपूर्ण सहअस्तित्व ही विद्या सहज स्त्रोत है। सहअस्तित्व में ही विद्या है।