जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

Back to Books
Page 114

के ऊपर हुआ जो रोगी थे। रोगी जब अपनी तकलीफों को सुनाने लगता है तो डाक्टर सुनना नहीं चाहते, वे रोगी को मशीन से सुनना चाहते हैं, मशीन से मनुष्य के दर्द को पहचानना होता नहीं। कुल मिलाकर मनुष्य ही मनुष्य के दर्द को सुन सकता है, पहचान सकता है यह बात यंत्रों से होता नहीं और हम रोग को पहचान नहीं पाते है। पहले जो कुछ लोग आयुर्वेद विधि से, यूनानी विधि से और विधियों से नाड़ी ज्ञान के आधार पर तकलीफों को पहचानने की कोशिश किये वह सराहनीय है। वे नाड़ियों के द्वारा, नाड़ी के गति के द्वारा, दबाव के द्वारा, प्रवाह के द्वारा, खिचांव के द्वारा, तनाव के द्वारा जो रोग को पहचानने की कोशिश की है वह सराहनीय है। शनै: शनै: कालान्तर में, यंत्र को देखकर उसकी (नाड़ी परीक्षण की) कठिनता को स्वीकार करते हुए, आदमी यंत्र की ओर दौड़ लिया। अब सब लोग यंत्र से ही बीमारी और दर्द सुनना चाहते है। यंत्र के आधार पर हम कुछ भी निर्णय लेते हैं रोगी तृप्त होता नहीं और रोग के मूल स्वरूप से चिकित्सक दूर ही रह जाता है। उसके लिए युक्ति, अनुसंधान, शोध करने की बात आती है। उसमें चूक हो ही जाती है क्योंकि अनुकूलता, प्रतिकूलता को जो शोध करना चाहिए वह बीमार के साथ वह चीज होता नहीं है। सारी विशेषज्ञता संग्रह सुविधा में फंस गयी। मरीज को देखकर दवाई लिखने का पचास रू. से लेकर दो हजार रू. तक लेते हैं। मैंने देखा है पचास रू. लेकर जो दवाई लिखता है वही दवाई दो हजार रू. लेकर बड़े शहर का विशेषज्ञ लिखता है। यहाँ हमने इस बात को ध्यान दिलाया कि मनुष्य कैसा पागल हो गया है। ज्यादा पैसे लेने वाला ज्यादा अच्छा चिकित्सक है ऐसा सोचता है, तो उस सीमा से अधिक उसमें अपेक्षा हो नहीं सकती। तीसरी बात, हम चिकित्सा में समग्रता के साथ कभी सोचे नहीं अर्थात चिकित्सक बनने की सोचे ही नहीं, ऐसा प्रयत्न ही नहीं किया। चिकित्सा समग्रता का मतलब पहले स्वास्थ अथवा निरोग के बलाबल को पहचाना जाए। रोग के बलाबल को कैसा पहचानेंगे? नाड़ी से पहचानेंगे। नाड़ी में क्या पहचानेंगे? नाड़ी में ये बतायेंगे, नाड़ी की गतियों की पहचान कर रोगों का साक्षात्कार करेंगे और लक्षणों से मिलाकर निश्चय करेंगे कि ये ही रोग है। उसका हम चिकित्सा करते हैं सफल होता है तो हमारा समझना सही माना जाए और यदि असफल होता है तो हमारा समझना गलत है। फिर यह शोध की बात बनता है। अभी की स्थिति में देखने को मिलता है जो जैसा