मानवीय संविधान
by A Nagraj
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- मानवत्व रूपी स्वधर्म विधि से सभी विधाओं में, से, के लिए मानव समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व का प्रमाण है। यही सुख, शान्ति, संतोष, आनंद सम्पन्नता है। यही धर्म है। स्वधर्म ही मानवधर्म, मानवधर्म ही सुख, सुख ही समाधान है।
- मानव लक्ष्य के लिए किए गये कार्य-व्यवहार के आधार पर आहार, विहार, व्यवहार भी सर्वशुभ सहज व्याख्या है।
- स्वयं में, से, के लिए किये गये निरीक्षण-परीक्षण से जीवन सहज पहचान होती है।
- मानवीय आहार को पहचानना सर्व मानव में, से, के लिए आवश्यक है।
- अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा से प्रस्तुत आशय अन्य को समझ में आना है। यह प्रकाशन सूचनात्मक है। सूचनायें अध्ययन पूर्वक अनुभव प्रमाण रूप में अभिव्यक्तियाँ हैं।
जागृति, जागृत परंपरा, जागृत मानव
जागृत परंपरा : अनुभव मूलक समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व सहज वैभव परंपरा।
जागृत मानव : सहअस्तित्व में अनुभव मूलक अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन।
- हर मानव में निर्भ्रमता ही सहअस्तित्व में जागृति है।
- जागृति मानव में से, के लिए नियति सहज स्वीकृति है।
- जागृत परंपरा सहज हर नर-नारी में जागृति अनुभव मूलक प्रमाण है।
- जागृति का धारक-वाहक केवल मानव ही है।
- जागृति सहज प्रमाण ही मानवत्व सहित परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था एवं सर्व मानव में अखण्ड समाज में सार्वभौम व्यवस्था के रूप में प्राप्त अधिकार है। प्राप्त अधिकार का तात्पर्य विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति विधि से प्राप्त अधिकार से है। यह जागृत परंपरा नियति प्रदत्त है।
हर मानव में, से, के लिए सार्थकता अस्तित्व में जागृतिपूर्वक सफल होना ही सहज है।