मानवीय संविधान
by A Nagraj
Page 17
- पूरकता व उदात्तीकरण क्रिया और उसकी संतुलित परंपरा त्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी स्पष्ट है। यही सहअस्तित्व सहज अनन्त इकाईयों में गुणात्मक विकास, यथास्थिति, पूरकता, उपयोगिता, उदात्तीकरण सूत्र व्याख्या है।
- सहअस्तित्व में ही अनंत इकाईयाँ परस्परता में विकास क्रम, विकास, पूरकता, उदात्तीकरण सूत्र और व्याख्या।
- सत्य
- सहअस्तित्व नित्य वर्तमान - सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति सदा (नित्य) प्रमाण व प्रभाव वर्तमान।
- सत्ता तीनों कालों में एक सा भासमान, विद्यमान एवं अनुभव गम्य है। यही साम्य ऊर्जा है।
- मानव परंपरा में स्थिति सत्य, वस्तुस्थिति सत्य, वस्तुगत सत्य परंपरा रूप में नित्य वर्तमान होना अनुभवमूलक विधि से समझ में आता है।
अस्तित्व, विकास, जीवन, जीवन जागृति, रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना के प्रति अनुभव प्रामाणिकता, नियति में, से, के लिए नित्य वर्तमान।
तीनों कालों में एक सा विद्यमान, भासमान, सुखप्रद, ऊर्जा सम्पन्न और जड़ चैतन्य प्रकृति में क्रिया श्रम, गति, परिणाम और अमरत्व, विश्राम, गन्तव्य, परंपरा में निर्भ्रमता अथवा जागृति पूर्ण परंपरा सहज वर्तमान।
- संतुलन
- स्वभाव गति प्रतिष्ठा।
- स्वतृप्ति पूर्वक स्वभाव गति का प्रकाशन।
- मानव परंपरा में स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार का सदुपयोग, सुरक्षात्मक क्रिया।
- संस्कृति
- पूर्णता के अर्थ में किया गया कृतियाँ।
- क्रियापूर्णता - आचरणपूर्णता सहज परंपरा।
मानवीयता पूर्ण आचरण परंपरा।