आशय पूर्वक स्वादन क्रिया ही आशा है। जिस स्वादन के बिना सहअस्तित्व में द़ृढ़ता व सुरक्षा नहीं है, उसकी अपेक्षा ही स्वादन क्रिया का आशय है। मूल्य रूचि ग्राही क्रिया ही स्वादन है।
जो जिनमें नहीं हो या कम हो और उसे पाने की इच्छा हो, ऐसी स्थिति में उसकी उपलब्धि से प्राप्त प्रभाव पूर्ण क्रिया की, जिसमें तृप्ति या तृप्ति का प्रत्याशा आशय हो, की आस्वादन संज्ञा है।