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Paribhashas
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मानव परम्परा में ही विकसित चेतना वादी व कारी होना पाया जाता है और इसी क्रम में आवश्यकता की पहचान, सीमा निर्धारण, उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशीलता ध्रुवीकरण होने के अर्थ में आवश्यकतावाद।
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