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Paribhashas
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चारों अवस्था, चारों पद, सत्ता में नित्य वैभव।
परस्परता में निर्विरोध सामरस्यता।
सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति।
अनंत इकाई रूपी प्रकृति में परस्परता और विकास क्रम तथा विकास।
अस्तित्व में परस्पर इकाईयों में अथवा इकाईयों की परस्परता में पूरक व उदात्तीकरण क्रिया और उसकी परंपरा।
अस्तित्व में अनंत इकाईयों की परस्परता में विकास, पूरकता, उदात्तीकरण सूत्र और व्याख्या।
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