मानव अपने परस्परता में व्यवहार न्याय प्रमाणित करने के लिए चर्चा, परिचर्चा प्रमाणात्मक प्रस्तावात्मक वार्तालाप।
अस्तित्व में प्रत्येक व्यक्ति को द़ृष्टापद में पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति में समाधान, समृद्धि, अभय, सह अस्तित्व की अपरिहार्यता को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति को स्वराज्य और स्वतंत्रता की परमावस्था को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति को न्याय सुलभता, उत्पादन सुलभता, विनिमय सुलभता की अनिवार्यता को पहचानने प्रत्येक व्यक्ति को संबंधों व मूल्यों को पहचानने व निर्वाह करने की संभावना को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति को कर्म स्वतंत्रता, कल्पनाशीलता को पहचानने। एक व्यक्ति जो कुछ जानता है, करता है, पाता है उसे प्रत्येक व्यक्ति को जानने, करने ,पाने को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने की क्षमता में समानता को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति अपने त्व सहित व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदार होने के रूप में समानता को पहचानने का सूत्र और व्याख्या।