मानव विकसित चेतना के अर्थ में किया गया मानसिक प्रक्रिया को सत्य में भास, आभास, प्रतीति और अनुभूति क्रम में पहचानना।
मानव मानस को मनाकार को साकार करने वाले मन: स्वस्थता के आशावादी व प्रमाणित करने वाले के रूप में पहचानना।
मानव मानस को स्वराज्य और स्वतंत्रता के अर्थ में कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता को पहचानना।
प्रत्येक मानव में (परिष्कृति पूर्ण) संचेतना को जानने, मानने, पहचानने और निर्वाह करने के रूप में प्रमाणित करना।
प्रत्येक मानव में जीवन वैभव सहज चयन व आस्वादन, तुलन और विश्लेषण, चित्रण व चिंतन, बोध व संकल्प और अनुभव एवं प्रामाणिकता के रूप में पहचानना।
मानव मानसिकता में मानवत्व को, मानवीय द़ृष्टि यथा न्याय, धर्म, (समाधान) सत्य, मानवीय विषय यथा पुत्रेषणा, वित्तेषणा और लोकेषणा एवं मानवीय स्वभाव यथा धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करूणा को व्यवस्था के रूप में पहचानना।
मानव में निषेध को अमानवीय द़ृष्टि यथा प्रिय, हित, लाभ, अमानवीय विषय-आहार, निद्रा, भय, मैथुन, अमानवीय स्वभाव यथा हीनता, दीनता क्रूरता को अव्यवस्था के रूप में पहचानना।
जीवन जागृति संपन्न मानसिकता का अध्ययन व्यवस्था के रूप में पहचानना।