पद भेद से अर्थभेद को अर्थात् पहचान बताने वाले वस्तु, पदार्थावस्था में ही विकास क्रम स्पष्ट है। प्राणावस्था भी इसी क्रम में है। ‘विकास’ गठन पूर्ण परमाणु के रूप में है यह मानव परम्परा में निरीक्षण परीक्षण पूर्वक स्पष्ट है। मानव ही ज्ञानावस्था में होने के कारण भ्रमित-निर्भ्रमित विधियों से जीता है। इस प्रकार चारों अवस्थाओं का मूल स्वरूप “पदार्थावस्था” भौतिक रासायनिक व जीवन क्रिया सहज विधि से चार अवस्था चार पद अस्तित्व में स्पष्ट।