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Paribhashas
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ज्ञानावस्था की इकाई की मूल क्षमता।
जड़ चैतन्य क्रिया का अध्ययन ही दर्शन क्षमता है।
दर्शन क्षमता से सत्कर्म का निर्धारण है।
पूर्ण जागृति ही दर्शन क्षमता की परमावधि है।
मनुष्य में गुणात्मक परिवर्तन संज्ञानशीलता में ही होती है यही दर्शन क्षमता के रूप में सहअस्तित्व में ज्ञान एवं अनुभूति के रूप में प्रत्यक्ष है।
दर्शन क्षमता ही अध्ययन एवं उदय का कारण है।
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