अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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भागीदारी को प्रमाणित करता है। यह उक्त तीनों के साथ शिक्षा-संस्कार सुलभता और स्वास्थ्य-संयम सुलभता है। इन्हीं व्यवहारिक आधारों के कारण मानव को जागृत और जागृतपूर्ण स्थितियों में देखा गया है। यह सबके लिये समीचीन है। इन्हीं दो स्थिति को क्रम से क्रियापूर्णता और आचरणपूर्णता का नाम दिया है। आचरण की विशालता में ही विशाल, विशालतर और विशालतम व्यवस्था में भागीदारी सम्पन्न होना सहज है। सम्पूर्ण प्रक्रिया का सफल स्वरूप समाधान और समृद्धि के रूप में मूल्यांकित होता है। अभय, सहअस्तित्व मानवीयता पूर्ण आचरण का फलन है। इन तथ्यों को भली प्रकार से देखा गया है। इस प्रकार हर परिवार मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार पूर्वक स्वायत्त मानव और परिवार मानव के रूप में जीते हुए व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाण प्रस्तुत करना सहज है। सहजता का तात्पर्य जागृति पूर्वक प्रमाण सहज गति ही सहज होना। जागृति नित्य समीचीन रहता ही है। यह परम्परा जागृत होने के उपरान्त ही सर्वसुलभ होता है। मानवापेक्षा, जीवनापेक्षा ही सार्वभौम अपेक्षा है। यही जागृति और कैवल्य का प्रमाण है।

जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान तथ्यों सहज विधिवत् अध्ययनपूर्वक बोध होना देखा गया है। ऐसे बोध सहज तथ्यों को उद्घाटित करने के क्रम में और लोकव्यापीकरण करने के क्रम में प्रमाणित होते ही है। फलस्वरूप अनुभूत भी होते हैं। इस प्रकार नित्य प्रमाण और अनुभव सहज रूप में ही सम्पन्न होता हुआ देखा गया है। यही कैवल्य और जागृति की महिमा है।

अस्तित्व सदा-सदा वर्तमानित है ही, व्यक्त भी है। अस्तित्व में अव्यक्त नाम की वस्तु अथवा नाम से इंगित वस्तु नहीं है। अस्तित्व निरंतर परम सत्य होने के कारण रहस्य भी नहीं है। अस्तित्व नित्य वर्तमान होने के कारण समझने वाले मानव में, से, के लिये अति सहज है, जटिल नहीं है। अतएव अस्तित्व में अविभाज्य रूपी मानव ज्ञानावस्था में होने के कारण इस अवस्था में, से, के लिये सार्थकता को प्रमाणित करने में समर्थ भी है। इन सभी कारणों से अनुभवमूलक विधि से जागृति और कैवल्य को प्रमाणित कर सकता है। मानव परंपरा इसका धारक-वाहक भी हो सकता है। यही ज्ञानावस्था का सार्थकता है।