अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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  • कृषि, पशुपालन, ग्राम शिल्प, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग व सेवा में जो पहले से पारंगत है, उनके द्वारा ही अन्य ग्रामवासियों को पारंगत करने की व्यवस्था की जायेगी।
  • यदि उपर्युक्त शिक्षा में कभी उन्नत तकनीकी विज्ञान व प्रौद्योगिकी को समावेश करने की आवश्यकता होगी तो उसको समाविष्ट करने की व्यवस्था रहेगी।
  • व्यवहार शिक्षा के लिए “शिक्षा-संस्कार समिति” “स्वास्थ्य-संयम समिति” के साथ मिलकर कार्य करेगी।
  • मानवीयता पूर्ण व्यवहार (आचरण) व जीने की कला सिखाना व अर्थ की सुरक्षा तथा सदुपयोगिता के प्रति जागृति उत्पन्न करना ही, व्यवहार शिक्षा का मुख्य कार्य है।

रूचिमूलक आवश्यकताओं पर आधारित उत्पादन के स्थान पर मूल्य व लक्ष्यमूलक अर्थात् उपयोगिता व प्रयोजनशीलता मूलक उत्पादन करने की शिक्षा प्रदान करना। जिससे प्रत्येक मानव में अधिक उत्पादन, कम उपभोग, असंग्रह, अभयता, सरलता, दया, स्नेह, स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष, बौद्धिक समाधान, प्राकृतिक सम्पत्ति का उसके उत्पादन के अनुपात में व्यय व उसके उत्पादन में सहायक सिद्ध हों। ऐसी मानसिकता का विकास करना, व्यवहार शिक्षा में समाविष्ट होगा।

कालान्तर में “ग्राम शिक्षा-संस्कार समिति” क्रम से ग्राम समूह, क्षेत्र सभा, मंडल सभा, मंडल समूह सभा, मुख्य राज्य समूह सभा, प्रधान राज्य सभा व विश्व राज्य की “शिक्षा-संस्कार समिति” से जुड़ी रहेगी। अतः विश्व में कहीं भी स्थित कोई जानकारी “ग्राम-शिक्षा-संस्कार समिति” को उपरोक्त सात स्त्रोतों से तुरंत उपलब्ध हो सकेगी। पूरी जानकारी का आदान प्रदान कम्प्यूटर व्यवस्था द्वारा आपस में जुड़ा रहेगा। इसी प्रकार अन्य चारों समितियाँ भी ऊपर तक आपस में जुड़ी रहेगी।

उत्पादन कार्य व्यवस्था

ग्राम में हर तरह का उत्पादन व सेवा कार्य “ग्राम उत्पादन-कार्य सलाह समिति” द्वारा संचालित किया जायेगा। यह समिति अन्य समितियों के साथ मिलकर कार्य करेगी। यह समिति गाँव के प्रत्येक स्त्री पुरूष को, किसी न किसी उत्पादन कार्य में लगावेगी।