मानवीय संविधान
by A Nagraj
- सहअस्तित्व में अनुक्रम सहज विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति सहज प्रमाण परंपरा एवं निरंतरता की स्वीकृति।
- अनुक्रम विधि में तद्रूप क्रिया, तदाकार प्रमाण ही अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन।
तदाकार = सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण स्वरूप में मानव स्वयं प्रमाणित होना जागृति है।
तद्रूप = ज्ञान अनुभव सम्पन्नता ही दृष्टा पद है और अन्य को बोध करने के रूप में प्रमाण।
अनुक्रम
- सहअस्तित्व में, से, के लिए क्रम, प्रमाण क्रिया।
- विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति और सहअस्तित्व सम्पूर्ण स्थिति, गति और क्रिया है। यही अनुक्रम व अनुभव है।
स्पष्टीकरण - हर मानव (हर नर-नारी) सहअस्तित्व में, से, के लिए अनुभव पूर्वक प्रमाण है। इसलिए हर मानव में सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण सहज एक रूपता का होना अनुक्रम है। यही प्रमाणिकता, प्रमाण है। सहअस्तित्व में एकाकारता ही अनुभव सहज बोध प्रमाण व संकल्प वर्तमान है।
सहअस्तित्व सहज अनुक्रम से परस्परता पूर्वक पूरक होने की स्वीकृति ही चित्त-वृत्ति में न्याय साक्षात्कार है। यही चित्रण, तुलन, विश्लेषण सहज सूत्र है। यही आस्वादन-चयन पूर्वक कार्य-व्यवहार व व्यवस्था में प्रमाण है। जिसका दृष्टा अथवा जानने, मानने, पहचान सहित निर्वाह करने वाला मानव ही है। मानव अपने में शरीर एवं जीवन सहित संयुक्त रूप में है। चारों अवस्था सहज परस्परता में मानव जागृत होने का प्रमाण ही मानवत्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी ही राष्ट्रीयता है अर्थात् चारों अवस्था में परस्पर पूरकता उपयोगिता सहज प्रमाण वर्तमान ही राष्ट्रीयता है।
राष्ट्रीय चरित्र
धरती अपने में अखण्ड व धरती पर मानव जाति अखण्ड समाज रूप में मानव का उद्देश्य सुख रूप में मानव संस्कृति-सभ्यता, अखण्ड समाज में सार्वभौम व्यवस्था में